
एक देश एक चुनाव … आर्थिक ढांचे पर कैसा प्रभाव? आखिर क्या है एक देश एक चुनाव की व्यवस्था? 1967 तक होते रहे एक साथ चुनाव.. आखिर किन- किन देशों में है एक देश एक चुनाव का प्रावधान…
प्रसिद्ध शायर राहत इंदौरी साहब ने कहा था: सरहदों पर बहुत तनाव है क्या? पता तो करो चुनाव है क्या? इन दिनों ये पंक्तियाँ काफी प्रासंगिक हैं.. एक देश एक चुनाव का मुद्दा बीते कुछ दिनों से खास चर्चा का विषय रहा, इससे जुड़े दो विधेयक 16 दिसम्बर ‘सोमवार’ को लोकसभा में पेश होने थे लेकिन इन पर विराम लग गया था, पर (आज) 17 दिसम्बर को इसे लोकसभा से पारित कर दिया गया इसके पक्ष में 269 वोट, वहीं विपक्ष में 198 वोट पड़े।
पर सवाल ये कि अगर देश मे वन नेशन वन इलेक्शन लागू , हो जाता तो एक साथ चुनाव का आर्थिक परिदृश्य से क्या प्रभाव पड़ेगा…
चलिए जानते हैं अपनी हिस्से की जानकारी; लेकिन उससे पहले.. आखिर क्या है एक देश एक चुनाव की व्यवस्था? एक देश एक चुनाव का मतलब है कि लोकसभा चुनाव के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव, स्थानीय निकायों नगर निगम, नगर पालिका नगर पंचायत व ग्राम पंचायत के चुनाव भी कराए जाए।
आजादी के बाद साल 1950 जब देश गणतंत्र बना, देश मे पहली बार आम चुनाव साल 1951-52 में हुए। 1951-52 से लेकर साल 1967 तक लोकसभा विधानसभा के चुनाव निरंतर एक साथ ही पांच वर्ष के अन्तराल में होते रहे। लेकिन कुछ राज्यों के पुनर्गठन के बाद कुछ नए राज्य भी अस्तित्व में आए, लोकसभा भी समय से पहले भंग कर दी गई यही वज़ह रही के एक साथ चुनाव की प्रक्रिया पर विराम लग गया। और तब से अलग अलग चुनाव होने लग गए। जो आज भी बरकरार हैं।
बता दें अमेरिका स्वीडन फ्रांस कनाडा जैसे देशों में एक साथ चुनाव कराने की व्यवस्था है।
एक देश एक चुनाव आर्थिक ढांचे पर कैसा प्रभाव? बढ़ जाएगी जीडीपी की ग्रोथ रेट कोविंद कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक सभी चुनाव एक साथ कराने से राष्ट्रीय रियल जीडीपी ग्रोथ रेट अगले साल 1.5 प्रतिशत बढ़ जाएगी। जीडीपी का 1.5 प्रतिशत वित्त वर्ष 2023-24 में 4.5 लाख करोड़ रुपये के बराबर था। यह रकम भारत के स्वास्थ्य पर कुल सार्वजानिक खर्च का आधा और शिक्षा पर खर्च का एक तिहाई है।
बढ़ेगा सार्वजानिक खर्च: केंद्र और राज्यो के चुनाव एक साथ होने पर सार्वजनिक खर्च 17.67 प्रतिशत बढ़ सकता है।
महंगाई में गिरावट: एक साथ चुनाव होने और अलग अलग चुनाव होने दोनों स्थितियों में महंगाई कम होती है, लेकिन एक साथ चुनाव होने के परिदृश्य में महंगाई में अधिक गिरावट आती है। यह अन्तर करीब 1.1 प्रतिशत का हो सकता है।
बढ़ेगा राजकोषीय घाटा: चुनावों के बाद सार्वजनिक खर्च बढ़ने का मतलब है कि एक साथ चुनाव के बाद अलग -अलग चुनावों की तुलना में ग्रोथ रेट बढ़ेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव के दो वर्ष पहले और दो वर्ष बाद राजकोषीय घाटा 1.28 प्रतिशत
तक बढ़ सकता है।