इन दिनों तकनीकि क्षेत्र में अलग -अलग प्रकार के अविष्कार हों रहें हैं जो अब रोजमर्रा की जिंदगी को आसान बनानें में काफी मददगार साबित हो रहें हैं। एक ऐसा ही अविष्कार अब तकनीकि दुनियाँ की एक बड़ी समस्या का हल लेकर आ गया है। आज के युग में बिना फोन के आप अपनी कल्पना भी नहीं कर सकते।
दूर दुनिया के किसी कोने में किसी व्यक्ति से सम्पर्क साधने में आप जिस फोन का इस्तेमाल करते हैं उसकी नेटवर्किंग समस्या अक्सर आप के लिए एक बड़ी बाधा बन जाती है.. लेकिन अब इसका हल ढूंढ़ लिया गया है हाल ही में एलान मस्क की कंपनी Starlink ने इस तकनीक को विकसित किया है यह तकनीक है – डायरेक्ट टू सेल।
इस तकनीक के जरिये आप बिना किसी नेटवर्क के भी अपने स्मार्टफोन से कॉल और इन्टरनेट का उपयोग कर सकेंगे। अब एक सवाल जो आपके मन में उठ रहा होगा कि क्या है? डायरेक्ट टू सेल… दरअसल यह एक ऐसी कनेक्टिविटी सेवा है जो स्मार्टफोन को सीधे सैटेलाइट से जोड़ती है।
इस तकनीक के माध्यम से आप अपने स्मार्टफोन का उपयोग सैटेलाइट के माध्यम से कॉल करने और इन्टरनेट ब्राउज करने के लिए कर सकेंगे। ठीक उसी तरह जैसे अभी हम मोबाइल टॉवरों का उपयोग करते हैं। इसके लिए हमें कोई नया डिवाइस खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ये सर्विस पहले से काम आने वाले स्मार्टफोन में चलेगी। चलिए जानते हैं कैसे काम करेगा डायरेक्ट टू सेल?
स्टेप्स में समझते हैं:
सैटेलाइट कनेक्शन: आपका स्मार्टफोन सीधे उन सेटलाइट से कनेक्ट होता है जो पृथ्वी के चारो ओर घूम रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे आपका फोन मोबाइल टावर से जुड़ता है।
एल टी ई तकनीक: फोन में लोंग टर्म इवोल्यूशन फीचर होता है जो मोबाइल टॉवरों से इन्टरनेट कनेक्शन प्रदान करता है।Starlink ने अपने कम कक्षा वाले उपग्रहों में भी एल टी ई को शामिल किया है l ये उपग्रह पृथ्वी के चारो ओर घूमते हुए मोबाइल टावर की तरह काम करेंगे।
इनोडबी की भूमिका: स्मार्टफोन से सैटेलाइट को कनेक्ट करने के लिए एक हार्डवेयर लगता है।इनोडबी जिसकी मदद से दोनों के बीच कनेक्टिविटी बन पाती है। अगर यह डिवाइस नहीं होगा तो सेटेलाइट को कुछ समझ नहीं आएगा।
नेटवर्क प्रोवाइडर भी जरूरी: अगर भारत में यह तकनीक लागू करना है तो Starlink को मोबाइल नेटवर्क providers के साथ contract करना होगा। तभी यह सेवा पूरी तरह से काम कर पाएगी। डायरेक्ट टू सेल के लिए अलग से शुल्क देना होगा। जो नेटवर्क प्रदाता ही चार्ज करेगा।